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Showing posts from January, 2014

कल तुम्हारे साथ थी...

कल तुम्हारे साथ थी तुम्हारे सोए हुए बिस्तर की सिलवटों में तो कभी तुम्हारी किताबों के बीच, तुम्हारे चौके में  बर्तनो के साथ    तो कभी दरवाज़ए की चौकठ पे; बगीचे में घास पे पड़ी ओस में और आम के पेड़ पे चहकती चिड़ियों के साथ, बाहर सड़क पे कंकर के बीच और तुम्हारी गाड़ी की सामने वाली सीट पे भी; कल तुम्हारे साथ थी तुम्हारी अलमारी घड़ी कपड़े रूमाल जूते सब के आस पास मंडराती रही; कल तुम्हारे साथ थी चाय बनाते अख़बार पढ़ते दौड़ते नहाते खाते और सोते हुए भी... करीब से देखा कल तुम्हे कल तुम्हारे साथ थी सुना है नौ बजे के करीब खुद से जुदा हुई थी तो क्या उसी समय तुमसे मिली? यकीन तो नहीं मगर लगता ज़रूर है  कि... कल रात तुम्हारे साथ थी...   (c) shubhra, 6th January 2014