ये सवाल मैं अक्सर करती हूँ अपने आप से... क्या तुम मेरे बारे में सोचते हो? जब चांद को देखते हो - क्या तुम मेरे बारे में सोचते हो? या जब मूसलाधार पानी बरसता है तब? मेट्रो पे जाते समय तो ज़रूर सोचते होगे? नहीं? झूठ! अच्छा प्रेस क्लब में तो कभी कभी राग भैरव गुनगुनाते हुए तो पक्का याद आती होगी... Netflix पे अनगिनत फ़िल्मों की लिस्ट देखते हुए क्या तुम मेरे बारे में सोचते हो? कौन सी देखे? जब कभी भी कोई पेंटिंग देखते हो तो क्या सोचते हो कि आजकल मैं क्या बना रही हूँ? मेरा गुस्सा बाहर निकल रहा है या नहीं... क्या तुम सोचते हो पहाड़ की उस दोपहर/शाम के बारे में जो हमने साथ बिताई थी - अलबत्ता फोन पर... क्या तुम सोचते हो, भवाली के चांद के बारे में या फिर पहाड़ की डूबती शाम के बारे में? क्या तुम मेरे बारे में सोचते हो जब कभी किसी आर्टिस्ट का, खासकर Van Gogh का या Da Vinchi का ज़िक्र होता है? जब कभी सर्कार की, मोदी की या कश्मीर की बात हो तो क्या तुम सोचते हो मेरे बारे में? उस रात के बारे में, जब कितने सब्र से तुम मुझे समझा रहे थे और मैं सवाल कर रही थी, समझने के लिए... कश्मीर मुद्दे को? क
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