मै नारीवादी हूँ, आजसे नही वर्षों से तब जब मै इस शब्द का मतलब भी नही जानती थी और शायद इसके बीज तो बचपन में ही बो दिए गये थे... गर्मी में छत पर दादी और बाबा के साथ सोते हुए या सर्दी में रात को आग तापते हुए उनसे कहानी सुनते हुए... शायद तब जब पहली बार सुना की राम ने सीता की अग्नि परीक्षा ली या फिर तब जब गर्भवती होते हुए भी उन्हे घर से निकाल दिया राम ने?! जिनको दादी भगवान कह कर बुला रही थी... कुछ वर्ष बाद बड़ी बहन की शादी में पंडित फेरों के बाद वचन याद करा रहे थे... तो मैंने दादी से पूंचा, जब राम ने ही अपने वचन नही निभाए तो और लोग कैसे निभाएँगे... डाँट कर चुप करा दिया गया था... महाभारत की कहानी सुनी और फिर टीवी पर देखी तो फिर से जागे वही सवाल... युधिष्ठिर एक पति होते हुए अपनी पत्नी को ही जुए मैं हार गये? द्रौपदी को कुंती ने पाँचो भाइयों में बाँट दिया? अर्जुन कैसे बाँट सकता है अपनी पत्नी को...? कृष्ण कैसे राधा के साथ रास कर के रुक्मणी के साथ शादी कर सकते हैं? ...
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