आज बहुत दिन बाद वो घर में अकेली थी, काम काज निपटा के वो थोड़ी देर धूप सेकने के लिए बाहर आके बैठी| नीला आसमान, मीठी सी धूप और रेडियो मिर्ची पे मनपसंद गाना... "इतना ना मुझसे तू प्यार बढ़ा, की मैं एक बादल आवारा..." उसने अपने बगीचे पे नज़र दौड़ाई, टमाटर के पौध में फूल आ रहे थे और गुलदावदी में कली... "ये पौधों का जीवन भी कितना हसीन है, एक सर्दी में ही शुरू से अंत तक का सफ़र तय हो जाता है... और यहाँ सदियान बीत जाती हैं मगर सफ़र ख़त्म नही होते..." उसने सोचा| तभी दरवाज़े की घंटी बजी देखा तो एक चिठ्ठी आई थी, लिखावट पहचानी हुई थी, कोरे पन्ने पे 24 पंक्तियों की एक कविता थी... पढ़ ही रही थी की फोन बजा, एक sms था, एक लाइन का, "he is no more..." कभी कभी कुछ शब्द ही काफ़ी होते हैं कत्ल के लिए, और वो ये सोच रही थी कि... ये पौधों का जीवन भी कितना हसीन है, एक सर्दी में ही शुरू से अंत तक का सफ़र तय हो जाता है... और यहाँ सदियान बीत जाती हैं मगर सफ़र ख़त्म नही होते... (c) shubhra 25th December, 2013
Painting with words, telling stories, expressing life...