ज़िंदगी में कयी ऐसे सवाल होते हैं
जिनके कोई जवाब नही होते
और अगर होते भी हैं
तो उनको कहने वाले जनाब नही होते
वो जवाब कहीं रह जाते हैं
खो जाते हैं
कभी खामोशियों में
कभी शोर में
हो जाते हैं गुम
कुछ सच्चाई से डर कर
कुछ ज़माने से डर कर
कुछ खुद सावल ही से डर कर
बस हो जाते हैं गुम
पर वो सवाल कहीँ नही जाते हैं
वो घूमते रहते हैं
यहाँ से वहाँ तक
इस पन्ने से उस पन्ने तक
इस ज़ुबान से उस ज़ुबान तक
इस मन से उस मन तक
इस कविता से उस कविता तक
एक सदी से दूसरी सदी तक
जिसके पास भी जाते हैं
बस जवाब ढूँढते हैं
परेशान करते हैं
उलझनें पैदा करते हैं
नये सवाल खड़े करते हैं
पर उनको फिर भी मिलते नही जवाब
वो जवाब ऐसे ही रहते हैं गुम
रहते हैं खामोश
करते हैं इंतज़ार
उस एक जनाब का
जिसके लफ़्ज़ों में
इन सवालों के जवाबों को
कभी मिले पनाह
शुभ्रा,
January 19, 2007
जिनके कोई जवाब नही होते
और अगर होते भी हैं
तो उनको कहने वाले जनाब नही होते
वो जवाब कहीं रह जाते हैं
खो जाते हैं
कभी खामोशियों में
कभी शोर में
हो जाते हैं गुम
कुछ सच्चाई से डर कर
कुछ ज़माने से डर कर
कुछ खुद सावल ही से डर कर
बस हो जाते हैं गुम
पर वो सवाल कहीँ नही जाते हैं
वो घूमते रहते हैं
यहाँ से वहाँ तक
इस पन्ने से उस पन्ने तक
इस ज़ुबान से उस ज़ुबान तक
इस मन से उस मन तक
इस कविता से उस कविता तक
एक सदी से दूसरी सदी तक
जिसके पास भी जाते हैं
बस जवाब ढूँढते हैं
परेशान करते हैं
उलझनें पैदा करते हैं
नये सवाल खड़े करते हैं
पर उनको फिर भी मिलते नही जवाब
वो जवाब ऐसे ही रहते हैं गुम
रहते हैं खामोश
करते हैं इंतज़ार
उस एक जनाब का
जिसके लफ़्ज़ों में
इन सवालों के जवाबों को
कभी मिले पनाह
शुभ्रा,
January 19, 2007
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