कब से भरे हुए थे बादल
आखिर हार कर बरस ही पड़े
मन अब भी समेटे हुए है सब कुछ
बाँध की दीवार हो जैसे बाढ़ को थामे....
न रोक इस बरसात को, ए मन
न डर तू, कि भीग जाएगा
वो सावन ही कैसा
जिसमे तन और मन ना भीगे
शुभ्रा, जुलाइ 28, 2009
आखिर हार कर बरस ही पड़े
मन अब भी समेटे हुए है सब कुछ
बाँध की दीवार हो जैसे बाढ़ को थामे....
न रोक इस बरसात को, ए मन
न डर तू, कि भीग जाएगा
वो सावन ही कैसा
जिसमे तन और मन ना भीगे
शुभ्रा, जुलाइ 28, 2009
Comments