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Showing posts from 2012

The Stream

The stream, flows happily... Gushing and meandering through the mountains and plains passing the big stones, jumping onto the smaller ones Spraying and splashing in day it’s her shine at night the sound that leaves all spellbound. Uncaring and unnerved by the boulders, the trees and even the roads built over her. She flows on turning from a waterfall to a stream to a waterfall again. laughing and moving ahead. STOP her and she turns, taking a new path! Passing the fields the mountains the villages soothing one and all by her magical gait. Moves on undeterred till she merges happily losing her identity and becoming one with the river! The stream like the spirit and the soul like a carefree teenage girl hops, skips and jumps… dancing to the tunes of time till she finds her abode! The stream,  flows happily!! © Shubhra 3 rd Sep 2012 (en-route village Turtuk, Laddakh)

तुम्हारा इंतज़ार है

तुम्हारा इंतज़ार है आज से नही बरसों से हर मौसम, हर साल, हर मौके पे गर्मी आई, फिर सावन-भादों, सब आके चले गये, अपने अपने नियम अनुसार| तुम किस मौसम का इंतज़ार कर रहे हो? किस नियम को मानते हो? कहाँ हो?  क्यूँ हो दूर, जुदा, छुपे छुपे, गुमनाम? क्यूँ नही है तुम्हारा  कोई रूप कोई रंग कोई चाल, कोई ढंग क्या तुम एक एहसास हो? या एक सपना? या फिर सिर्फ़ एक इच्छा  जो कि दिल के किसी कोने से  कभी कबाद आवाज़ देती है.. कौन हो तुम? कैसे दिखते हो? गर रास्ते में मिले कभी तो कैसे पहचाने तुम्हे? क्या गुमशुदा होने की रपट लिखाए? मगर कैसे?  न कोई नाम, न पता, न तस्वीर कुछ भी तो नही है मेरे पास, और अभी तो तुम्हे पाया ही नही अपनाया ही नही तो खोए कैसे?  रपट लिखवाए कैसे? जो अपना हो और जुदा हो जाए  उसका शोक मनाते हैं मगर शोक भी मनाए कैसे? क्योंकि अभी तो तुम्हे पाना है अपना बनाना है.. क्योंकि अभी तो तुम्हारा इंतज़ार है हाँ अभी भी तुम्हारा इंतज़ार है|| (c) shubhra October 2011...

मुझे सीता नहीं बनना...

मै नारीवादी हूँ, आजसे नही वर्षों से तब जब मै इस शब्द का मतलब भी नही जानती थी और शायद इसके बीज तो बचपन में ही बो दिए गये थे... गर्मी में छत पर  दादी और बाबा के साथ सोते हुए या सर्दी में रात को आग तापते हुए  उनसे कहानी सुनते हुए... शायद तब जब पहली बार सुना  की राम ने सीता की अग्नि परीक्षा ली या फिर तब जब गर्भवती होते हुए भी उन्हे घर से निकाल दिया  राम ने?!  जिनको दादी भगवान कह कर बुला रही थी...  कुछ वर्ष बाद बड़ी बहन की शादी में  पंडित फेरों के बाद वचन याद करा रहे थे... तो मैंने दादी से पूंचा, जब राम ने ही अपने वचन नही निभाए  तो और लोग कैसे निभाएँगे... डाँट कर चुप करा दिया गया था... महाभारत की कहानी सुनी  और फिर टीवी पर देखी  तो फिर से जागे वही सवाल... युधिष्ठिर एक पति होते हुए  अपनी पत्नी को ही जुए मैं हार गये? द्रौपदी को कुंती ने पाँचो भाइयों में बाँट दिया? अर्जुन कैसे बाँट सकता है अपनी पत्नी को...? कृष्ण कैसे राधा के साथ रास कर के  रुक्मणी के साथ शादी कर सकते हैं? ...

बहुत कुछ करना है!

बहुत कुछ करना है, आसमान छूना है इरादे तो पक्के हैं, बस हौसला बढ़ाना है| डगर क़ठिन है, पर रास्ता बनाना है कोई साथ हो ना हो, आगे बढ़ते जाना है बहुत कुछ करना है, आसमान छूना है इरादे तो पक्के हैं, बस हौसला बढ़ाना है| उमीद कभी टूटेगी, राह कभी छूटेगी नई आशा जगाके, हताश दिल को बहलना है पुराने रिश्ते टूटे तो नये दोस्त बनाना है अपनो को मनाना और परायों को अपना बनाना है बहुत कुछ करना है, आसमान छूना है इरादे तो पक्के हैं, बस हौसला बढ़ाना है| उजली डगर पर चले थे, अब अंधेरे रास्ते अपनाना है कल क्या हो पता नही, आज को पूरा जीना है आज को पूरा जीना है और कुछ ऐसा करना है कि हर ज़बान पे ये तराना हो कल तक थी अंजान आज एक फसाना है| बहुत कुछ करना है, आसमान छूना है इरादे तो पक्के हैं, बस हौसला बढ़ाना है| (c) shubhra November 21, 2011