तुम्हारा इंतज़ार है
आज से नही बरसों से
हर मौसम, हर साल, हर मौके पे
गर्मी आई, फिर सावन-भादों,
सब आके चले गये,
अपने अपने नियम अनुसार|
तुम किस मौसम का इंतज़ार कर रहे हो?
किस नियम को मानते हो?
कहाँ हो?
क्यूँ हो दूर, जुदा, छुपे छुपे,
गुमनाम?
क्यूँ नही है तुम्हारा
कोई रूप कोई रंग
कोई चाल, कोई ढंग
क्या तुम एक एहसास हो?
या एक सपना?
या फिर सिर्फ़ एक इच्छा
जो कि दिल के किसी कोने से
कभी कबाद आवाज़ देती है..
कौन हो तुम?
कैसे दिखते हो?
गर रास्ते में मिले कभी
तो कैसे पहचाने तुम्हे?
क्या गुमशुदा होने की रपट लिखाए?
मगर कैसे?
न कोई नाम, न पता, न तस्वीर
कुछ भी तो नही है मेरे पास,
और अभी तो तुम्हे पाया ही नही
अपनाया ही नही
तो खोए कैसे?
रपट लिखवाए कैसे?
जो अपना हो और जुदा हो जाए
उसका शोक मनाते हैं
मगर शोक भी मनाए कैसे?
क्योंकि अभी तो तुम्हे पाना है
अपना बनाना है..
क्योंकि अभी तो तुम्हारा इंतज़ार है
हाँ अभी भी तुम्हारा इंतज़ार है||
(c) shubhra October 2011
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